बुधवार, 7 मई 2025

ऑपरेशन सिंदूर



मिटाया था तूने सुखी-चैनों का सिंदूर,

अब तू भी मिट यही नीति यही दस्तूर,

ज़ो हमें छेड़ता है उसे छोड़ते नहीं मगरूर, 

बिखरेगा तू, होगा खंड-खंड, चूर-चूर।


बेकसूरों पर उठाया था तूने फन,

चैन से रहना ना भाया तुझसे बन,

धुनने लगा तू, बजने लगा ढम ढम,

अब ना छुप,  ना बच पायेगा  सुन,


उठा सर, कटेगा धड़, धड़-धड़,

वक्त गया, ज़ो सकता था तू पकड़,

उठा है तो गिरेगा, ही धड़ाम-धड़ाम,

गिरेगा तो चीरेगा ही चड़ाम-चड़ाम।


अभी भी हो सके तो जाग, जाग,

है सक्या सामर्थ्य तो भाग, भाग,

चल बच सकता तो बच ले आज

हम वसूलते हैं, मूल, सूद-ब्याज।


और आंधी चलेगी जलजला उठेगा,

ओर भी चहुँ ओर कोलाहल मचेगा,

काल कवलित होंगे लोग निर्दोष भी,

जिसका दंश  तू कालों तक भोगेगा।


मुँह की खाना नहीं छोड़ता तू आदत,

हरबार, करता है खुद की फ़जीहत,

हम शास्त्र के साथ शस्त्रवेता हैं जान,

रक्त का जबाब रक्त जानते हैं मान।


©® स्वराचित मौलिक 

@ बलबीर राणा 'अडिग'

बुधवार, 30 अप्रैल 2025

कहानी : दरवान दादा

 


धरम सिंह के कमरे में पहुँचते ही पिताजी हो जाते थे शुरु । 

अरे धर्मू आ गया तू, ज्यादा लेट नै कर दी रे तूने आज ? 

हाँ बाबा आज घंटा भर ज्यादा हो गया, ड्यूटी के बाद आफिस में बुलाया था साब ने, कल से एक ट्रेनिंग करानी है बल।

अरे यार अपने साब को नै समझाता है कि खाने का टेम बि होता है कुछ, बोलना पड़ता है बेटा अपने लिए, नै तो ये देसी साब लोग ऐसे ही परेशान करते रेंगे। 

धर्मू - ना पिताजी, ना। परेशानी वाली कोई बात नहीं है, फौज में ऐसा ही चलता रैता, चैबीस घंटे के नौकर जो ठैरे।

अच्छा एक बात बता कि तू पिन्सन कब ले रा है रे ? पन्द्रा साल हो तो गयी तेरी नौकरी ?

धर्मू - पिताजी कहाँ की पिन्सन अभी से ? अभी तो पन्द्रा पूरा ही हो रा है, अभी तो नायक ही बना हूँ आगे परमोशन भी लेना है और असली नौकरी की जरूरत तो अब है, ये देखो बच्चे अब पढ़ने वाले हो रहे हैं, उनकी अच्छी पढ़ाई लिखाई करानी है तभी तो ये कुछ बड़ा कर पायेंगे, नै तो मेरे जैसे सिपाई बनेंगे, अर क्या पता इनके जमाने में मेरे जैसे दस पास को फौज में नौकरी मिलती भी या नहीं। और आगे कहीं बाहर जमीन……. हल्की आवाज में बोलता और खरीदना बोलता ही नही था, एकाएक चुप हो जाता, क्योंकि इस बात पर पिताजी बहुत चिड़ जाते ठैरे, और ‘थाती हरण पूत मरण’ पर व्याख्यान सुनाने लगते। धरम चुपचाप परेड वाली ड्रेस बदलने लगता, लेकिन पिताजी अपने धुन में लगे रहते। 

अरे बाबा सब हो जाएगा। उपर वाला जिसको सर देता है उसे सेर भी देता है। देखा नै तूने कि तेरा काका और पल्ले ख्वाळा का मदनी हौलदार टेम पर आ गए थे अपने घर सकुशल। और वो पदान का लड़का लख्खू तो पन्द्रा में ही आ गया था बल, अर बोल रा था कि बोड़ा मैं नै पड़ा आगे परमोशन के चक्कर में। अब वे सभी अपनी माटी अपनी गृहस्थी में खेती पुंगड़ी को खैनी कर रहे हैं। उस मदन सिंह ने तो पचास बकरियां भी रखी हैं। अब तू ही देख पाँच साल हो गए हमको अपनी घर-कूड़ी छोड़े जब से तू हमें साथ में लाया।

खेतों के भीड़े पगार टूट गए होंगे, लोग कूणे किनारे ढंग से खोदते भी होंगे कि नै ? पता नि किस-किस को तूने खेत कमाने को पकड़ाये हैं ? तेरे पिन्सन जाने तक सब बंजर हो़ जाऐगा बाबा। वो सुगै गांव की गोशाला टूट जाएगी तब तक, मकान के अन्दर मूसौं ने कर दी होगी रैं-दैं। अरे बाबा सब बरबादी हो गई होगी। छत की पठाल सरक गई होगी, चू रा होगा जगह-जगह से, तेरा काका निकाल रा होगा या नै उन चूनों को। दार-बांसे (छत की बल्लियां) सड़ने बैठ गये होंगे, इस परमोशन के चक्कर में तेरी सारी घर-कूड़ी ने बांझ (बंजर) पड़ जानी है रे बांझ ! मेरी सुन और अकल से काम ले, तेरी पिन्सन पक गई है चल निकल, ले चल मुझे अपनी थाती में। किसने समालनी है सजवाण मवासी की उतनी बड़ी चल अचल संपति जमीन जैजाद को, तीस नाली नेट जोत है मेरे नाम, उपर से वो छानी मरुड़ों वाली जमीन अलग। उतने घास के पेड़ लगाये हैं मैने। भीमल, खड़ीक, तिमला। और देखा नै तूने हमारे तिमला के पेड़ों पर जाड़ों के बखत गांव वाले कैसे आते हैं हरे पत्ते मांगने दूध वाली गाय भैंसो के लिए। सारे सगोड़ों में फल फरूट के पेड़ अलग लगाए हैं तेरे दादा और मैने। पूरा बागवान है। आड़ू, पुलम, संतरा, नांरगी, और वो खुबांनी व अंखरोट तो तेरा दादा लाया था बल कश्मीर से। ऐरां ! आजकल पता नै कौन खा रा होगा उनको, तेरी दीदियां भी दूर हैं। लोगों के छौरे (बच्चे) उच्छयाद (हानि) कर रै होंगे। तेरा काका कितना अपीड़ हो गया रे जो एक दाणी भी नै भेजता इन नातियों के लिए, ये यां दवाई से पकाये देसी फरूट खा रहे हैं। 

बस ! तोते जैसी रटायी हुई यही एक कहानी हर दिन लगती थी दरवान दादा की, जब भी बेटा धरम ड्यूटी से क्वाटर पर पहुँचता था। एक लड़का था बुढ़ापे का, बारह पास करके फौज में भर्ती हो गया था। समय पर शादी कर दी थी, दो पोते हुए, जैसे ही बच्चे स्कूल लायक हुए धरम सिंह उन्हें गांव से बाहर शहर में ले आया था पढ़ाने के लिए।

अस्सी साल के बूढ़े पिताजी को कहाँ छोड़ता गांव में अकेला, इस लिए पोतों का वास्ता दे साथ ले आया था। कहते हैं जैसे-जैसे इन्सान की उमर बढ़ती है वैसे-वैसे लोभ ज्यादा बढ़ने लगता है। दरवान दादा उमर के इस पड़ाव में भी गांव में खेती, गाय, गोशाला बाहर भीतर रमक-धमक रहा था। बहू को गृहस्थी की हर छोटी बड़ी बातें समझाता। नाक रखकर खाना और कमर कसके कमाना सिखाता था। बेटे को साथ में चलने के लिए हरेहद मना कर रहा था कि मैंने अपना घर मुलुक छौड़ और कहीं नहीं जाना है। हमने पसीने से सींचा है इस गृहस्थी को, दिन-रात एक करके तेरी माँ और मैंने इतनी बड़ी सम्पत्ति जुटाई है। 

जमीन जायदाद पशुधन पर दिन-रात खटकने से पत्नी पैंसठ में ही गोलोक वासी हो गई थी। बहू का डोला भी नहीं देख पाई थी बेचारी। दरवान दादा की किस्मत में था संतति का सुख इसलिए अच्छे होश हवास में भोग रहा था। दो नाती गोद में खेल रहे थे। जोड़ा टूटने के बाद एक बार तो दादा टूट सा गया था लेकिन बहू के आने व नातियों की किलकारियों से फिर बृद्ध अवस्था में भी उमंग व हिम्मत छलांग लगाने लगी थी ।   

बल, बुढ़ापे का प्रेम नाती पोते, इन्हीं पोतों के प्रेम में बुढ़ापा कट रहा था इसलिए इनके बिना गांव में अकेला रहना मुश्किल क्या नामुमकिन लगा और समय के साथ समझौता करके घर की सारी माया छोड़ चल पड़ा था पोतों के पीछे। आने के दिन पोते हाथ पकड़कर आगे खींच रहे थे और दादा रुआंसा पीछे मुड़-मुड़ कर अपने गांव घर को निहार रहा था कि क्या पता दुबारा देख सकूं या नहीं इस मातृभूमि को। 

आगे दो-ढाई साल अपने ही नजदीक शहर में रहे थे वहाँ अपने ही गढ़वाली लोग थे, साथ में अक्सर गांव घर से आए लोगों से मुलाकात हो जाती थी, उठना बैठना हो जाता था। बार त्यौहार या किसी के शादी ब्याह में आना-जाना लगा रहता था। इसी बहाने घर मकान की भी देखभाल हो जाती थी। तब घर से बाहर आना इतना नहीं अखरता था। लेकिन पिछले साल जब धरम अपने साथ दूर परदेश में ले आया तो दरवान दादा को यहाँ जेल सी हो गई थी। 

बाहर घूमने जाना तो आदमियों की भीड़ में भी अकेला, निरा अकेला। किसी से बातचीत करने को नहीं बनता, पूछें तो क्या पूछें । देश परदेश के लोग, अलग बोली-भाषा, अलग खान-पान वाले, जीवन में हरिद्वार ऋषीकेश में जितनी समतल भूमि देखी थी वही मानस पटल पर अंकित था कि शहर ऐसे होते हैं, जानता था कि दुनियां बहुत बड़ी होती है, उस पहाड़ के बाद पहाड़ उसके बाद एक और पहाड़, दूर हिमशिखर, ह्यूँ चूळी कांठियां और उसके आगे नजर के उस पार भी होगा कोई अन्य पहाड़ियों का सिलसिला, खेत-खलिहान, गांव, गदेरे-नदियों का संगम। बाकी धरती का सबसे बड़ा भू-भाग समतल होता है नहीं जानता था। बस जहाँ तक नजर पहुँचती वहीं तक मानता था समतल सैंणें शहर को।   

ना ही इतनी अच्छी हिन्दी बोलने आती थी कि किसी से सुगम संवाद स्थापित कर पाता। शहर का रंग ढंग। क्वाटर पर बहू भी कितना बतियाती, वह भी अपना डीसीप्लेन, साफ-सफाई व कीचन के काम-धंधों में लगी रहती। पोते स्कूल, ट्यूशन फिर अपना खेलना-कूदना और पढ़ाई। अब वे भी पहले के जैसे कंधे में नहीं झूलते, टीबी कमप्यूटर गेम आदी आधुनिक शहरी आवो हवा में घुलने लगे थे। दादा की बात का जबाब अब गढ़वाली मे नहीं हिन्दी मिक्स अग्रेजी में देते। अब उनकी बातें भी कम समझ में आती। 

बात करने का एक मात्र साधन था तो धरम सिंह। अपने घर गांव की बात करने व दिल का गुबार निकालने का जरिया। वही हुंगरा दे हाँ में हाँ मिलाता, कुछ प्रश्नों का जबाब देता और कुछ को समझाने बुझाने की कोसिस करता कि आपके लिए कोई कमी पेशी नहीं है, आराम से खावो पीओ, अपने बुढ़ापे के दिन आराम से काटो। पर जिसकी कटनी थी उसकी कट नहीं बीथ रही थी। दिन रात एक ही मन भ्रम, घर की चिंता, अपने पहाड़ देहात की यादें। सुरम्य धरती, सदाबहार हरियाली अपनी आवो हवा का सुमिरन, स्मरण।  

यहाँ न घुघती की घुर्र-घुर्र सुनाई देती ना न्योळी हिलांस की भौंण, ना पाखों में बासते काखड़़ र्मिगों की अवाजें थी ना ही दूर जगंल में डुकरते बाग की गूँजती गर्जना डुकरताळ। यहाँ था तो लिंडेर कुतों का वक्त वे-वक्त भौं-भौं, कैं-कैं। चारों तरफ मकानों का जंगल, ऊँचे पाँच-सात मंजिला बिल्डिंगें। एक दूसरे से चिपके। भीड़ भरि गलियां सड़क। मोटर गाड़ी रिक्शा टेम्पो का शोर। दिन-रात चैं-चैं, पैं-पैं। यहाँ अपनी रौंत्याळी धार-गाड़ों की सुरसुर्या ठंडी बथौं की बयार नहीं बल्कि घ्यैं-घ्यैं घूमते पंखे से निकली वाली गर्म लू थी। धारा-मंगरो व छौयूं का ठंडा पानी नहीं, दातों को चुभता फ्रीज का वाटर था। बाँज बुराँस की घनी छाया ना बल्कि अल सुबह ही मिनट में सर तपाती धूप थी। 

बुराँस फ्योंळी के फूल देखने की खुद (याद) में दिल अक्सर अधीर व्याकुल रहता और मन हवा में उड़ता कि अभी जाऊँ और गले लगाऊँ, साँखी भिटोळी करूँ अपने उन देव फूलों की जिन्होने जीवन में लावण्य और लालित्य की परिभाषा सिखायी। इस उत्कंठा में आशा हिलोरें मारती कि कल तो चला ही जाऊँगा, मना लूंगा धरमू को। खुद में आज-आज, कल-कल करती आशाऐं सुबह सूर्योदय में ओश की बूंद जैसे चमकती और धूप के बड़ने पर समाप्त हो जाती। मधुमास बंसत की एक-आध झलक दिखती थी वो भी गमले में खिले गेंदे के फूल में। 

रोज की जीवन चर्या बारह मासी एक जैसा ऋतु चक्र हो गया था। बंद दरवाजे के पीछे अपना कमरा, बाहर जीना, सीड़ियां, छत और एक लाईन पंक्ति में बने फौजी आवसीय कालोनियों की गलियां। कुछ समय घूम-घाम कर वापस अपनी चारपाई में पीठ के बल लेटे रहना और छत पर घूमते पंखे की पुंखुड़ियों के साथ घूमना। टीवी पर चलते चलचित्र के सीन समझ में नहीं आते, किसी समय समाचार सुनना होता, या कभी कोई धार्मिक सीरियल देखता कि पोते रिमोट को कहीं और घुमाकर टोम-जैरी, डोरेमोन पर ले जाते अर दादा कहता इन भ्यास मसाणों को मत देखो बाबा, छळ लग जाएगा।  

हाँ… बस, मन लगता तो एक समय, वह समय होता पोतों का पढ़ायी करने वाला, जमीन पर बैठे दोनो हाथों को घूटनो के बाहर बांधे व हिलते हुए उनको एकटक देखना, तब वह वृद्ध आमात्य मन क्या सोच रहा होता किसी को नहीं पता होता, बस बेटे बहू व पोतों को सकून होता कि अभी चुप है। पढ़ाई करते पोतों को एकटक देखना या तो उनके अच्छे सुनहरे भविष्य के सुमिरन में खो जाना होता हो या इस बात का सकून था कि मेरे पोते मेरे सामने हैं। दोनो बातें बाराबर हो सकती। यूं ही दो साल गुजर गए शहर के उस उजले अंधियारे में। हाँ आज पिच्चासी साल के दरवान दादा के लिए अंधियारा ही था वह शहर। बसरते बेटे पोतों के लिए यह उजियारा अब एक नयें उज्जवल भविष्य की राह क्यों ना थी। 

अब धीरे-धीरे घर की चिंता व इस कैदखाने से मनोविकारों ने घेर लिया, विस्मृति मनोभ्रंश, अल्जाईमर का सिकार हो गया। एक ही बात की रटंत, बार-बार एक ही सवाल, जबाब देने पर भी वही सवाल, कभी-कभी बेटे और पोतों को ही पूछ बैठना कि आप कौन हो, कहाँ से हो ? गांव में फलाने खेत में गेंहूं कटे या नहीं, फलाने खेत में लोगों के पशुओं ने उज्याड़ खा दिया होगा। फलाने तोक में आजकल अच्छी घास हो रखी होगी। फलाने के बैल बूढ़े हो गए थे लाया या नहीं। घर कब चलेंगे ? पेन्सन ले ले। मुझे अपनी पितृभूमि में ही मरना है, पितृ शमशान में ही मेरा अंतिम संस्कार करना। तेरे साथ दूसरा कौन कंधा देगा मुझे यहां परायी भूमि में, इस परायी भूमि में नही मरना मुझे, हर दिन अपने मरने का दिन बताता। अस्पष्ट आवाज और लड़खड़ाते कदमों के साथ ऐसे ही अपनी धुन में फौज के उस पन्द्रहा बारह के कमरे में रात-दिन दादा का अपना ही लोक संसार बिचरण करता। 

आखिर एक दिन मस्तिष्क के कोष्ठकों एवं दिल के स्पंदनों में बसे अपने लोक दुनियां का सुमिरन इतना भारी पड़ा या हल्का हुआ, कि अचानक ब्रेन स्ट्रोक पड़ा। कुछ दिन अस्पताल और कुछ दिन घर पर अर्धचेतना में रहते पन्द्रहा दिन बाद प्राण वायु उसी लोक के लिए उड़कर चली गई जहाँ की रट इन पाँच सालों से लगाया हुआ था। बस छूट गई थी उस अंजान भूमि में उस काया की मिट्टी जिसका सम्बन्ध उस मिटटी से कभी रहा ही नहीं था। जीवन के आठ दशक तक जिस माटी में पैदा होने से आँख की भौंहों की सफेदी तक खपा उस माटी में उसकी मिट्टी का ना मिलना जन मानस के लिए जरूर चर्चा का विषय रहा था, लेकिन उस मातृभूमि प्रेमी चित के लिए नहीं, क्योंकि वह चिताळा (जगारूक) चित चेतना तक उस मातृ माटी के साथ ही विचरण कर रहा था। 

 

कहानी - बलबीर राणा ‘अडिग’

30 Apr 2025

शुक्रवार, 21 मार्च 2025

अडिग दोहावली : मातृभूमि वैरासकुण्ड भूमि



पंचजूनी पर्वत तले, बसा रमणीय गांव।।
मटई ग्वाड़ छाती है, मोलागाड़ा पाँव।।1।। 

दोणा भुम्याळ रक्षक है, माँ भगवती कृपाण।। 
हितमोली हीत देवा, सैणि सार है प्राण ।।2।।

दायीं भुजा महादेव, शिव शंकर भगवान
दिव्या धाम वैरासकुण्ड, जगत विख्यात नाम ।।3।।

तपोस्थली है दशानन, ऋषि वशिष्ठेस्वर नाम।।
जगत का सबसे वृहद, हवन कुण्ड विद्यमान।।4।।

इस देवांगन आंगन में, सुन्दर शोभित ग्राम।।
खलतरा मोठा चाका, वैरूं सेमा आम ।।5।। 

जन्में इस दिव्य भूमि ने, पूत सपूत तमाम ।।
तेरे लिए नहीं अडिग, कहीं पवित्र जग जान ।।6।।

जन्म थाती त्वै सत-सत प्रणाम

@ बलबीर राणा 'अडिग'

सुनो नेताजी

नेता जी गर प्रेम बरसाए हो तो, 

फिर काहे को गरबगलाए हो ।
जिन पहाड़ियों ने ताज़ पहनाया,
उन्हीं को क्यों गरियाए हो !

क्या बोले थे ये धरती किसकी ?
तुम साले पहाड़ियों की बिसात है?
तो सुनो नेता जी कान खोलकर!
ये हमारी बबोती, नहीं तुम्हें सौगात है।

सेवक हूँ हाथ जोड़ चुनाव लड़े हो, 
पहाड़ की मिट्टी पर करोड़ों में खड़े हो।
पहाड़ी की बिल्ली पहाड़ को ही म्याऊँ, 
सत्ता के नशे में जो तुम इतना तड़े हो?
सच्ची के पहाड़ी हो तो सुनो दगड़यौ,
गंगा यमुना के हो तो बिंगों दगड़यौ।

इन गालीबाजों को अब सबक सिखाना है,
बणियां-सणियों को अब नहीं बसाना है। 

भूमी हमारी भुमियाळ हमारा,
फिर क्यों नहीं भू क़ानून हमारा?
मूल निवासी हो जाएंगे प्रवासी,
गैर क्यों बनेगा मालिक हमारा?


@ बलबीर राणा 'अडिग'

5 मार्च 25

प्रेमचंद्र अग्रवाल मंत्री उत्तराखंड के पहाड़ियों को गाली देने पर 

मंगलवार, 4 फ़रवरी 2025

AI का बढ़ता प्रभाव : प्राकृतिक बुद्धिमत्ता अब कृत्रिम बुद्धिमत्ता की गिरफ्त में





      कोई चीज किस हद तक ? आम तौर पर देखा गया है कि जीवन के हर पक्ष को एक हद में बाँध दिया जाता है, लेकिन जब कोई चीज हद लांघती है तो उसे या तो अद्भुत कहा जाता या अन्योचित। हद से उपर की चीजें विशिष्ट भी होती हैं तो विनिष्ट भी। परिवर्तन इस चराचार जगत की प्रवृति है जो मानव समाज व सभ्यताओं के साथ उनके जीवन स्तर को परिवर्तित करता आया है। परिवर्तन वेगवान व कभी ना रुकने वाली वह धारा है जिसमें बहने से तत्कालिक मानव सभ्यता खुद को नहीं बचा सकती है।

      आज वैज्ञानिक तकनीकी ने इस युग के परिवर्तन को तेज नहीं अत्यधिक तेज गति दी है, इस सुपर सौनिक रफ़्तार ने धरती के साथ पूरे सौरमण्डल को अपनी गिरफ्त में कर लिया कहना गलत नहीं होगा। जीवन के हर क्षेत्र के कार्य सुलभ से भी अति सुलभ होते जा रहे हैं और यह सुलभता की गति कहाँ रुकेगी कह नहीं सकते, तकनीकी आविष्कार नित नएं आयाम व प्रतिमानो को प्रतिस्थापित कर रहा है। पुनारावृति नहीं नित नवाचार, इस नवाचार में कम्प्यूटर साइन्स ने जो एक अति लम्बी छलांग लगायी है वह वास्तव में हद के बाहर की बात है, इसे कम्प्यूटर साइन्स का अभी तक का सबसे उन्नत व अद्भुत आविष्कार कहा जा सकता है और यह उन्नति है एआई, याने आर्टीफिशियल इन्टेलीजेन्स, जो जीवन के सारे मिथकों को तोड़ता नजर आ रहा है। कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा कि प्राकृतिक मानव बुद्धिमत्ता अब पूरी तरह से इस कृत्रिम बुद्धिमत्ता की गिरफ्त में आती नजर आ रही है । 

      वसरते आज एआई से परिचय नयां नहीं हैं फिर भी संक्षिप्त रूप से परिचय इस प्रकार है कि एआई यानि आर्टीफिशियल इन्टेलीजेन्स के जरिए मशीनों को मानव जैसे सोचने, समझने एवं निर्णय लेने में क्षमतावान बनाया जाता है। यह मशीनों को डेटा विश्लेषण करने, समस्याओं को हल करने, और सीखने में सक्षम बनाता है। इसका उद्देश्य ऐसे सिस्टम को विकसित करना है जो स्वचालित और स्मार्ट तरीके से कार्य कर सके । अर्थात एआई कंप्यूटर विज्ञान की वह शाखा है जिसके तहत इंसानों की तरह सोचने, समझने, निर्णय लेने व कार्य करने के लिए सिस्टम यानि मशीनें को तैयार किया जाता है। आज एआई से न केवल जीवन आसान बन रहा है बल्कि समाज, व्यवसाय, और तकनीकी क्षेत्र में क्रांतिकारी बदलाव आ रहा है। एआई तकनीकी का काम करने के मूल सिद्धांत निम्नवत है:-

पहला -  डेटा संग्रहण और प्रसंस्करण (Data Collection and Processing) - सिस्टम को काम करने के लिए बहुत सारा डेटा चाहिए होता है। यह डेटा विभिन्न स्रोतों से लिया जाता है, जैसे कि सेंसर, इंटरनेट, डाटाबेस, या यूजर इंटरैक्शन। इसमें डेटा को साफ, संरचित और उपयोगी रूप में व्यवस्थित किया जाता है फिर इसे प्रोसेस करने के लिए एआई मॉडल तैयार किए जाता है।

दूसरा - मशीन लर्निंग (Machine Learning) - एआई सिस्टम का मुख्य भाग मशीन लर्निंग है, जिसमें एल्गोरिदम और मॉडल्स को ट्रेन किया जाता है जिसमें सुपरवाइज्ड लर्निंग, अनसुपरवाइज्ड लर्निंग और रीइन्फोर्समेंट लर्निंग शामिल होता है।

तीसरा - डीप लर्निंग (Deep Learning) - यह मशीन लर्निंग की ही उन्नत शाखा है, जो न्यूरल नेटवर्क (Neural Network) का उपयोग करती है। न्यूरल नेटवर्क इंसानी मस्तिष्क के न्यूरॉन्स की तरह काम करता है। यह जटिल डेटा को समझने और पैटर्न पहचानने में सक्षम है, जैसे इमेज, आवाज व टेक्स्ट इत्यादी।

चौथा - एल्गोरिदम (Algorithms) - एल्गोरिथम यानि किसी समस्या को हल करने या गणना करने के लिए निर्देशों का वह समूह जो एक खास प्रक्रिया के ज़रिए किसी कार्य को करने या समस्या को हल करने के लिए चरण-दर-चरण डिजाइन किया जाता है जिसका इस्तेमाल कंप्यूटर विज्ञान, गणित, और डेटा प्रोसेसिंग में किया जाता है जैसे निर्णय लेने के लिए Decision Trees व के-मीन्स (K-Means) अर्थात यह डाटा को विभिन्न समूहों में विभाजित कर सुव्यवस्थित करता है।

पाँचवा - भाषा और संवाद NLP  (Natural Language Processing) - नेचुरल लैंग्वेज प्रोसेसिंग याने प्राकृतिक भाषा प्रसंस्करण की मदद से एआई मानव भाषाओं को समझकर उपयोग कर सकता है। NLP कंप्यूटर विज्ञान व कृत्रिम बुद्धिमत्ता का वह क्षेत्र है जो प्राकृतिक भाषा व कंप्यूटर के बीच बातचीत का संबंध स्थापित करता है।

छटवां - कंप्यूटर विजन (Computer Vision) -  एआई छवियों एवं वीडियो का विश्लेषण करके उन्हें पहचान सकता है। इसका उपयोग चेहरे को पहचानने, ऑब्जेक्ट डिटेक्शन आदि में होता है।

सातवां - डिसीजन मेकिंग और ऑटोमेशन (Decision Making and Automation) - एआई सिस्टम संग्रहीत डेटा और प्रोग्रामिंग के आधार पर त्वरित और सही निर्णय लेता है। जैसे सेल्फ-ड्राइविंग कार, रोबोटिक्स इत्यादी।

आठवां - मॉड्यूल फीडबैक (Feedback Loops) - एआई सिस्टम अपने प्रदर्शन को सुधारने के लिए फीडबैक का उपयोग करता है। यह नई जानकारी से खुद को अपडेट और बेहतर बनाता है। जैसे हेल्थकेयर (डायग्नोसिस और इलाज), ई-कॉमर्स व अन्य संस्थाओं के लिए सिफारिश प्रणाली, एग्रीकल्चर में सही एवं सटीक खेती करना, फाइनेंस क्षेत्र में जोखिमो का प्रबंधन, शिक्षा में व्यक्तिगत लर्निंग इत्यादी।

      जैसे-जैसे अधिक से अधिक व बुद्धिमान प्रणालियाँ निर्मित होती जा रही हैं, विचार करने के लिए एक स्वाभाविक प्रश्न उठ रहा है कि ऐसी प्रणालियाँ एक-दूसरे के साथ कैसे समन्वय स्थापित करेंगी। मल्टी-एजेंट सिस्टम ने इस पर प्रभावी काम किया है जिससे ऑनलाइन मार्केटप्लेस, परिवहन प्रणालियों व अन्य क्षेत्रों में तेजी से परिवर्तन आया है। अपने शुरुआती दिनों से ही एआई ने उन प्रणालियों के डिजाइन और निर्माण का काम संभाला जो वास्तविक दुनिया में सन्निहित थे। आज रोबोटिक्स का क्षेत्र संवेदना व अभिनय की मूल बातों को अजाम दे रहा है, यह प्रभावी ढंग से व्यवहार करने में सक्षम बन गया है, रोबोट न्यूज एंकर, वेटर या कर्मचारियों से सभी परिचित हैं। कहना गलत नहीं होगा कि आज रोबोट मनुष्यों का अब्बल व अच्छा साझेदार बनता जा रहा है।

एआई का विकास और इतिहास - जॉन मैकार्थी को आर्टीफिशियल इन्टेलीजेन्स का जनक माना जाता है जो कि  अमेरिकी कंप्यूटर वैज्ञानिक थे, इनके साथ एलन ट्यूरिन, मार्विन मिनस्की, एलन न्यूवेल एवं हरेन ए साइमन एआई के पहले संस्थापकों में से थे। ज्यादा गहराई में ना जाते हुए संक्षेप में कि एआई का प्रारंभिक दौर 1950 से 1970 था जिसमें एलन ट्यूरिंग ने ‘ट्यूरिंग टेस्ट’ के माध्यम से यह जांचने का सुझाव दिया कि मशीनें इंसानों की तरह सोच सकती हैं या नहीं। पहली एआई प्रोग्रामिंग भाषा हौंठो के रूप में विकसित हुई। 1970 से 199 के समय को एआई का मध्यकाल कहा जाता है जिसमें एआई हेतु विशेषज्ञ प्रणाली (Expert Systems) का विकास हुआ, जो विशेष कार्यों में इंसानों से भी बेहतर निर्णय ले सकती थी। तब से एआई को व्यावसायिक रूप से उपयोग में लाने के प्रयास शुरू हुए। 1990 से वर्तमान तक के समय को आधुनिक काल कहा जाता है जिसमें मशीन लर्निंग, बिग डेटा और डीप लर्निंग ने एआई को अधिक प्रभावी और उपयोगी बनाया। स्वचालित वाहन, वर्चुअल असिस्टेंट, एलेक्सा, सिरी, और चौटबॉट्स जैसे उन्न्त तकनीकियों का विकास हुआ।

      एआई के वर्गीकरण की बात की जाय तो इसमें पहला नैरो एआई (Narrow AI) जो विशेष कार्य या समस्या का हल करने के लिए डज़ाइन किया गया है जिसमें वॉयस असिस्टेंट, सर्च इंजन, यूट्यूब या नेटफ्लिक्स जैसे पोर्टलों के लिए सिफारिस प्रणाली शामिल है। दूसरा जनरल एआई इसे इंसानों की तरह सोचने व निर्णय लेने के लिए सक्षम बनाया गया है और तीसरा सुपर एआई जिसमें ऐसी मशीनों का निर्माण शामिल है जो इंसानी बुद्धिमत्ता को पीछे छोड़ दे पर यह अभी भविष्य की कल्पना है। इन्हीं वर्गीकरण के आधार पर एआई सिस्टमस की कार्यप्रणलियों को रीएक्टिव मशीन, लिमिटड मेमोरी, थ्योरी ऑफ माइन्ड, एवं सेल्फ अवेयरनेस के रूप में जाना जाता है। 

      एआई के उपयोग व प्रभाव की बात की जाया तो जीवन के तमाम क्षेत्रों में एआई की कुशलता व कौशलता का प्रभाव होता जा रहा है हाँ न्याय एवं संसदीय जैसी कुछ प्रणालियां हैं जहाँ व्यक्ति को ही निर्णय लेना या देना होता है, ये अभी अछूते रखें हैं जिस दिन इन व्यक्तियों की जगह एआई सुरु हो गया तो तब यही मशीनें मानव जीवन का नीति नियंता बन बैठेंगी फिर ना किसी जज की जरूरत होगी ना नेता की। आज एआई के बढ़ते प्रभाव को मानव जीवन के लिए वरदान व अभीशाप दोनों रूप में बराबर देखा जा रहा है। यह मनुष्यों की क्षमताओं को बढ़ाने मे अतिशय मदद कर रहा है, जिसमें सही गलत दोनो क्षमताएं शामिल हैं। आज इसे जिम्मेदारी, न्याय एवं नैतिकता से उपयोग करने की बहुत आवश्यकता है, सही दिशा में इसका उपयोग जहाँ उज्जवल व समृद्ध भविष्य की ओर इंगित करता है वहीं गलत दिशा में अकल्पनीय विद्रूपता की तरफ मानव जीवन का जाना तय मना जा रहा है।

एआई का जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में सदुपयोग व प्रभाव

शिक्षा - एआई ने शिक्षा के क्षेत्र में व्यक्तिगत सीखने के अनुभव को बढ़ाया जिसमें डिजिटल ट्यूटर, ऑनलाइन कोर्स एवं स्मार्ट कंटेंट की मदद से छात्र अपनी गति और आवश्यकता के अनुसार पढ़ाई कर रहे हैं। एआई आधारित शिक्षा प्लेटफॉर्म जैसे कान अकादमी, बायजूस इत्यादी छात्रों को उनकी गति और रुचि के अनुसार पढ़ने की सुविधा दे रहे हैं और आंकलन कर रहे है।

स्वास्थ्य सेवा - स्वास्थ्य सेवाओं में एआई ने बिमारियों के निदान को और सटीक व तेज बनाया है। रोबोटिक सर्जरी, रोगों की पूर्व चेतावनी एवं व्यक्तिगत चिकित्सा जैसे क्षेत्र एआई से और अधिक कुशल हुए हैं। साथ में फिटनेस ट्रैकर्स व स्वास्थ्य एप्लिकेशन जो हार्ट रेट और अन्य मेट्रिक्स को मॉनिटर करते हैं प्रभावी होते जा रहे हैं। इसके साथ वर्चुअल डॉक्टर चैटबॉट्स (वॉयस इनपुट व टेक्स्ट में बातचीत करने का माध्यम) एआई हेल्थ ऐप्स छोटी-छोटी स्वास्थ्य समस्याओं के समाधान में कारगर हो रहे हैं।

व्यवसाय व रोजगार - एआई ने व्यवसायों को अधिक उत्पादक और कुशल बनाया है। ग्राहक सेवा में चैटबॉट्स, डेटा एनालिसिस और ऑटोमेशन ने नए अवसर पैदा किए हैं।

रचनात्मकता एवं मनोरंजन - मनोरंजन उद्योग में एआई ने सिफारिश प्रणाली (Recommendation) को अत्यधिक बल दिया है साथ ही कंटेंट निर्माण, वर्चुअल इफेक्ट्स और एनीमेशन को बेहतर बनाया है। एआई से मीडिया, गेमिंग, फिल्म, संगीत एवं वीडियो गेम्स अधिक इंटरैक्टिव व आकर्षक बन रहे है। चैट जीपीटी जैसे प्लेटफॉम कंटेंट लेखन व अन्य रचनात्मक कामों में मदद कर रहा है।

यातायात व परिवहन - स्वचालित वाहन जैसे सेल्फ-ड्राइविंग कारों ने सुरक्षित व कुशल यात्रा का मार्ग प्रशस्त किया है। एआई आधारित नेविगेशन एप्लिकेशन गूगल मैप जैसे प्लेटफार्म ट्रैफिक की सही जानकारी के साथ सही व तेज़ रास्ता सुझाते हैं। एआई सिस्टम के उपयोग से सार्वजनिक परिवहन जैसे ट्रेन, बसों और हवाई जहाजों का संचालन अधिक कुशलता से व समय पर हो रहा है।

घरेलू जीवन में सुधार - वर्चुअल असिस्टेंट में अमेज़न एलेक्सा, गूगल असिस्टेंट एवं सिरी घर में छोटे-बड़े कार्यों में मदद कर रहे हैं, जैसे अलार्म सेट करना, रिमाइंडर देना या मौसम की जानकारी देना इत्यादी। स्मार्ट उपकरण में रोबोटिक वैक्यूम क्लीनर, स्मार्ट लाइट्स, और थर्मास्टैट्स तकनीकियां घरेलू कामों को सरल बना रहा है।

अनुसंधान और विज्ञान में मदद - स्पेस रिसर्च में एआई का उपयोग अंतरिक्ष मिशनों की योजना बनाने एवं डेटा विश्लेषण करने में हो रहा है। यह प्राकृतिक आपदाओं का पूर्वानुमान, भूकंप, तूफान और बाढ़ जैसी आपदाओं की भविष्यवाणी करने में कारगर हो रहा है।

डिफेंस सेक्टर - डिफेंस सेक्टर में कृत्रिम बुद्धिमत्ता का उपयोग तेजी से बढ़ रहा है यह आधुनिक युद्ध व सुरक्षा रणनीतियों में क्रांतिकारी बदलाव ला रहा है। एआई का इस्तेमाल न केवल युद्ध के मैदान में बल्कि साइबर सुरक्षा, खुफिया जानकारी, और स्वचालित हथियार प्रणालियों के विकास में अग्रणीय हो रहा है।

      कहना प्रसांगिक होगा कि आज मानव जीवन को सुविधाजनक, सुरक्षित और उत्पादक बनाने में एआई महति भूमिका निभा रहा है।

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का दुरुपयोग व प्रभाव

      जिस प्रकार उपरोक्त कहा गया है कि एआई का सही दिशा में उपयोग जहाँ उज्जवल व समृद्ध भविष्य की राह प्रसस्त कर रहा है वहीं गलत दिशा में उपयोग से जीवन का अकल्पनीय विद्रुरपता की और जाना तय है। आज जहाँ कृत्रिम बुद्धिमत्ता ने तकनीकी प्रगति के नए द्वार खोले हैं वहीं इसका दुरुपयोग समाज, सुरक्षा और नैतिकता के लिए गंभीर समस्याएं उत्पन्न कर रहा है। एआई के दुरुपयोग से निजी जानकारी की चोरी, सामाजिक असमानता व र्राष्ट्रीय सुरक्षा जैसे जटिल मुद्दों को भी खतरा पैदा हो रहा है। इसके दुरुपयोग को निम्न रूपों में देखा सकता है। 

फर्जी जानकारी और दुष्प्रचार फैलाना - एआई आधारित टूल्स का उपयोग फेक न्यूज़ और डीपफेक वीडियो बनाने के लिए किया जा रहा है, जो तेजी से वायरल होते हैं जिससे कारण समाज में डर अराजकता आदि फैल रहा है। एआई से नकली खबरें, प्रचार, और झूठी जानकारी फैलाना आसान हो गया है। यह समाज में भ्रम और अस्थिरता पैदा कर रहा है। आज यह तकनीक इतनी उन्नत हो चुकी है कि लोगों को सच और झूठ के बीच अंतर करना मुश्किल हो गया है।

सामाजिक और राजनीतिक दुष्प्रचार ¼Propaganda½ - चुनावों में मतदाताओं को प्रभावित करने के लिए एआई का इस्तेमाल किया जा रहा है। फर्जी राजनीतिक प्रचार और अभियानों के लिए एआई आधारित कंटेंट का उपयोग टार्गेटिंग के साथ भावनात्मक अपील के लिए नकली विज्ञापन बन रहे हैं। उदाहरण के लिए कुछ दिन पहले गृहमंत्री अमित शाह के अंबेडकर बयान पर आम आदमी पाटीं ने अंबेडकर द्वारा अमित शाह को थप्पड़ मारना दिखाया। ऐसे ही कई प्लेटफॉर्म धार्मिक या राजनीतिक कट्टरता वाले कंटेंट को बना रहे हैं क्योंकि एआई जनित कंटेंट का आकर्षक होने से अधिक व्यूअरशिप मिलती है।

सोशल मीडिया बॉट्स और ट्रोलिंग - एआई बॉट्स सोशल मीडिया पर फर्जी प्रोफाइल बनाकर गलत सूचनाएं फैलाने में मदद करते हैं। ये बॉट्स राजनीतिक या सामाजिक मुद्दों पर नकारात्मक बहस और विभाजन उत्पन्न करते हैं। किसी खास नैरेटिव को बढ़ावा देने के लिए झूठे डेटा या जानकारी को वायरल किया जाता है। साथ ही विडियो एडिट सॉफ्टवेयर एवं सोशियल मीडिया प्लेटफॉर्मों पर उन्नत एआईकृत वीडियो एडिटर से आकर्षक वीडियो बन रहे हैं जिससे रील्स नशेड़ियों ने नंगेपन व बेवड़ेपन से सोशियल मीडिया पर भसड़ मचाई हुई है जिसके चलते आम कुलीन वर्ग के बच्चे भी संक्रमित हो रहे हैं, जो कि एक सभ्य मनुष्य व समाज की उन्नति नहीं अवनति का कारक बनता जा रहा है  

डीपफेक तकनीक - इस तकनीकी से नकली वीडियो और ऑडियो बनाए जा रहे हैं, जो वास्तविक व्यक्ति की तरह दिखते हैं। इसका दुरुपयोग राजनेताओं, विशेष हस्तियों व आम लोगों को बदनाम करने या धोखा देने के लिए किया जा रहा है।

साइबर अपराधों में वृद्धि - एआई का उपयोग फिशिंग ईमेल व मैलवेयर को अधिक कुशल बनाने के लिए किया जा रहा है। हैकिंग के लिए किसी सिस्टम्स को ब्रेक करना आसान हो गया है जिसमें सरकारी या गैर सरकारी संस्थाओं का काम बाधित होना या नष्ट किया जाना शामिल है।  

गोपनियता व निजता का हनन - एआई आधारित निगरानी प्रणालियां लोगों की गतिविधियों पर नज़र रखती हैं, जिससे उनकी निजता को खतरा हो रहा है। बड़ी कंपनियां द्वारा एआई का इस्तेमाल करके उपयोगकर्ताओं का डेटा अनैतिक रूप से इकट्ठा करके बेचने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है।

आतंकी गतिविधियों में उपयोग - एआई जनित ड्रोन व अन्य स्वचालित हथियारों का इस्तेमाल आतंकी समूहों द्वारा किया जा रहा है, इससे आतंकी समूहों को अधिक शक्तिशाली उपकरण मिल रहे हैं।

नकली सामग्री बनाने में - एआई का दुरुपयोग साहित्य, संगीत, और कला के क्षेत्र में नकली रचनाएं बनाने के लिए किया जा रहा है, जिससे असली रचनात्मकता व कला का हनन हो रहा है।

बेरोजगारी व नौकरियों पर प्रभाव - एआई आधारित ऑटोमेशन से श्रमिक नौकरी से वंचित हो रहे हैं जिससे आर्थिक असमानता बढ़ने की संभावना है।

युद्ध - स्वचालित हथियार और रोबोटिक सिस्टम्स एआई द्वारा संचालित होकर युद्ध के नियमों का उल्लंघन कर सकते हैं। यह वैश्विक शांति और सुरक्षा के लिए बड़ा खतरा हो सकता है।

नकली समीक्षाएं और रेटिंग्स (Fake Reviews and Ratings)- ई-कॉमर्स वेबसाइट्स से उत्पादों की नकली सकारात्मक समीक्षाओं से उपभोक्ताओं को लुभाने का काम हो रहा है।

      अगर संक्षिप्त में एआई प्रभाव की बात की जाए तो एआई जहाँ मानव जीवन के लिए वरदान साबित हो रहा है वहीं इसका अभिशाप होना उतना ही प्रासांगिक है। इसके दुरुपयोग को रोकने के लिए न्याय सम्मत नियमों व कानूनों की सख्त आवश्यकता है। ताकि विकास की परिपाटी को विनाशीय बनने से रोका जा सके।

      अब सवाल ये भी उठता है कि हमारे देश का आम जन मानस इसकी उपयोगिता को कैसे समझे ? तो यहाँ पर कहना प्रसांगिक होगा कि मैं नहीं जानता, मुझे नहीं पता या मेरा तो क्या वाले नजरिये से स्वयं, समाज व राष्ट्र हित नहीं होने वाला। नहीं जानने या समझने वाली मानसिकता से समाज में एक बड़ी खाई पड़ने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता। नही तो फायदा लेने वाला सही गलत सब फायदा लेगा वा मूक बना मनुष्य या वर्ग प्रताड़ित होता रहेगा। परिवर्तन का सिद्धान्त ही खुद को अपडेट करना कहता है। दूसरी बिडम्बना ये भी है कि आज हमारे देश में ये सभी आधुनिक तकनीकियां औपनिवेशिक भाषा यानी अंग्रेजी में ही ज्यादा सुलभ हैं तो आम जन को अपनी मातृ व राष्ट्रभाषा के साथ अंग्रेजी को अच्छी तरह जानना, समझना व सीखना होगा। हाँ इसी एआई का प्रभाव है कि गूगल ट्रांसलेट जैसे प्लेटफॉर्मों की वजह से सब जानकारियां हिन्दी व राष्ट्रीयकृत भाषाओं में भी उपलब्ध हो चुकी हैं बस व्यक्ति को जिज्ञासु रहने व होने की जरूरत है। अंत में यही कहना चाहूँगा कि परिवर्तन के साथ चलते हुए ही राष्ट्रहित सर्वोपरि रखा जा सकता है नही तो अपरिवर्तित रहने से निज भविष्य में खुद की पहचान व वर्चस्व रखना संभव नहीं है।             

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@ बलबीर राणा अडिग 

 

मंगलवार, 21 जनवरी 2025

बलबीर राणा अडिग की कहानी संग्रह का लोकार्पण









 देहरादूनरू रायपुर सौड़ा सरोली अटल उत्कृष्ट राजकीय इन्टर कॉलेज में दिनांक 12 जनवरी को भव्य साहित्यिक अयोजन हुआ। कार्यक्रम दो सत्रों में अयोजित किया गया। पहले सत्र में गढ़रत्न श्री नरेन्द्र सिंह नेगी जी की अध्यक्षता में सुबेदार बलबीर सिंह राणा ‘अडिग’ की गढ़वाली कहानी संग्रह ‘बिदै अर हौरि कहानि’ का लोकार्पण हुआ। सत्र का संचालन गढ़ साहित्य अलंकरण श्री गिरीश सुन्दरियाल जी द्वारा किया गया। सत्र में बलबीर राणा अडिग के लेखकीय उद्बोधन के बाद साहित्य विद व विदुषी श्रीमती बीना बेंजवाल द्वारा कथा संग्रह ‘विदै अर हौरि कहानि’ पर समक्षीय व्याख्यान एवं कर्नल (सेवानिवृत) मदन मोहन कण्डवाल द्वारा कथाकार के साहित्य, सैन्य जीवन व भारतीय सेना एवं विश्व सैन्य साहित्य पर विस्तृत ज्ञानोर्पाजन व्याख्यान दिया। सत्र के अन्त में श्री नरेन्द्र सिंह नेगी जी द्वारा अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में उन आम जनता को सावधान किया जो अपने बच्चों को गढ़वाली साहित्य नहीं पढ़ा रहे हैं साथ में उन्होने कहा कि केवल साहित्य पर निर्भर नहीं सभी को अपनी गढ़वाली भाषा के लिए सचेत और संवेदशील होना पड़ेगा। 

कार्यक्रम के दूसरे सत्र में विराट गढ़वाली कवि सम्मेलन हुआ जिसका संचानल वरिष्ठ साहित्यकार पत्रकार व कुशल मंच संचालक श्री गणेश खुगशाल ‘गणी’ जी के द्वारा किया गया। जिसमें श्री गिरीश सुन्दरियाल, श्री धर्मेन्द्र नेगी, श्रीमती प्रेमलता सजवाण, श्री बलबीर राणा ‘अडिग’, श्री ओम बधानी, श्री हरीष जुयाल कुटज, श्री ओम प्रकाश सेमवाल, श्रीमती बीना बेंजवाल, श्री मदन डुकलाण, श्री गणेश खुगशाल ‘गणी’ और गढरत्न श्री नरेन्द्र सिंह नेगी जी द्वारा कविताओं का पाठ किया गया। सभी कवियों ने अपनी अपनी विष्शिट काव्य शैली से जनता को बांधे रखा। कवि सम्मेलन मे जहाँ श्री गिरीश सुन्दरियाल ने प्रेम गीत से जनता को मुग्द किया वहीं धरर्मेन्द्र नेगी ने व्यंग गजल से अपने चिर परचित अंदाज में वाह वाही लूटी, प्रेम लता ने फौजी भाई को सेवानिवृति के बाद नईं सामाजिक जिम्मेवारी, बलबीर राणा ने अपने सैन्य अंदाज में वीर रस की कविता, श्री ओम बधानी ने सैन्य परिवार गीत तो हरीष जुयाल कुटज ने अपने हास्य व्यंग ‘मास्टरों कि तन्खा’ से लोगों को खूब हँसाया, श्री ओम प्रकाश सेमवाल ने पिस्यूं आटू कबतक पीसलौ सामयिकी गीत, श्रीमती बीना बेंजवाल ने उत्तराखण्ड मातृशक्ति जीवन संघर्ष, श्री मदन डुकलाण जी ने ‘हथ भर कटेगे अब बेथ भर रयूं चा’ गजल व कविता से सबको रिझाया। श्री गणेश खुगशाल ‘गणी’ जी ने सैनिक के बॉर्डर और सैनिक पत्नी के घर के बॉर्डर पर संघर्ष का सुन्दर कवित्व पाठ किया। अन्त में श्री नरेन्द्र सिंह नेगी जी ने बढ़ती उम्र के प्रभाव व प्रेम कविता के साथ अपने गीत से दर्शकों को मुग्द किया। यह क्षेत्र में पहला आयोजन था जब एक सैनिक ने अपनी सेवानिवृति पर साहित्यिक संगोष्ठी करायी। 

आयोजन में भारी मात्रा में साहित्यिक व सैन्य परम्परा क्षेत्र के साथ ग्राम सौड़ा के रैबासी व अडिग जी के कुटुम्ब जन मैजूद थे। मुख्यतया साहित्यिक वर्ग से भाषाविद रामाकान्त बेंजवाल जी, रंगकर्मी श्री कुलानन्द घनशाला, श्री जगदम्बा चमोला, डा. ईशान पुरोहित, श्री गिरीश बडौनी, श्री अनिल नेगी, श्री नन्दन राणा नवल, श्री आशीष सुन्दरियाल, दिल्ली से श्री जबर सिंह कैन्तुरा, श्री जगमोहन सिंह जगमोरा, श्रीमती भगवती सुन्दरियाल, श्री रमेश बडौला, श्री अरविन्द प्रकृति प्रेमी, श्री इन्द्रेश प्रसाद पुरोहित आदि सैन्य वर्ग से कैप्टेन उमा दत्त जोशी, कैप्टेन तित्रोक सिंह रावत, कैप्टेन कुंवर सिंह’ वीर चक्रा, कैप्टेन महादेव प्रसाद, कैप्टेन गबर सिंह नेगी, कैप्टेन सत्यपाल सिंह राणा, 14 गढ़वाल से सुबेदार कविन्द्र थपलियाल आदि थे, साथ ही अयोजन में श्री अनिल कठैत, सुनिल कठैत, श्री दलीप फर्स्वाण, श्री कलम सिंह राणा, श्री इन्द्र सिंह बिष्ट, विद्यालय प्रथानाचार्य श्री राम बाबू विनय आदि गणमान्य लोगों की गरिमामयी मैजूदगी रही।

मंगलवार, 31 दिसंबर 2024

कभी नहीं छूटता चलने को




कभी नहीं छूटता चलने को,
संघर्ष जीवन से निकलने को।

सुरज इस लिए रोज डूबता है,
फिर एक नईं सुबह उगने को।

वक्त चलायमान रुकता कहाँ, 
वक्त होता ही है गुजरने को।

लगे रह हैरान परेशान न हो,
तू आया ही है कुछ करने को।

संजो समय को सामर्थ्य से,
सामर्थ्य होता ही संवरने को।

कर्म का नाम ही जीवन अडिग,
कर्म बिन जीवन न निखरने को। 


@ बलबीर राणा 'अडिग'